परिचय
भारत में प्रारंभिक राष्ट्रवादी काल में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों का उदय हुआ। इनमें, श्रमिक आंदोलन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें श्रमिकों के अधिकारों के लिए व्यक्तियों और संगठनों द्वारा महत्वपूर्ण योगदान दिया गया। यह कालक्रम दस्तावेज भारत के श्रमिक वर्ग आंदोलन के प्रारंभिक प्रयासों में प्रमुख घटनाओं का उल्लेख करने का उद्देश्य रखता है, विशेष रूप से मध्यमपंथियों, श्रमिक संघों के गठन, और भारत की स्वतंत्रता से पहले और बाद में महत्वपूर्ण मील के पत्थरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए।
प्रारंभिक राष्ट्रवादी और श्रमिक आंदोलन
प्रारंभिक वर्षों में, ससिपादा बनर्जी, सोराबजी शापूर्जी बेंगाली, और नारायण मेघाजी लोकहंडे जैसे अग्रदूतों ने श्रमिक आंदोलन की नींव रखी, जिसमें श्रमिकों के क्लब, समाचार पत्र और संघों की स्थापना की गई।
पहला श्रमिक हड़ताल और स्वदेशी उभार
19वीं सदी के अंत में रेलवे श्रमिकों द्वारा पहली महत्वपूर्ण हड़ताल देखी गई, जो स्वदेशी आंदोलन के दौरान व्यापक राजनीतिक चिंताओं में संलग्न हो गई।
श्रमिक संघों का गठन और विधायी पहल
1920 के दशक में श्रमिक संघों का औपचारिककरण हुआ, जिसमें AITUC की स्थापना और श्रमिक संघ अधिनियम का निर्माण हुआ, जिसने इन संगठनों को कानूनी मान्यता और विनियमन प्रदान किया।
TDA, मेरठ षड्यंत्र मामला, और स्वतंत्रता के बाद के विकास
1920 के दशक के अंत में TDA, मेरठ षड्यंत्र मामले, और स्वतंत्रता के बाद श्रमिक वर्ग आंदोलन में ध्रुवीकरण की घटनाएँ देखी गईं।
उपरोक्त कालक्रम भारतीय श्रमिक वर्ग आंदोलन के विकास को दर्शाता है, जिसमें प्रारंभिक प्रयास, ट्रेड यूनियन निर्माण, और स्वतंत्रता के दौरान और बाद के मुख्य घटनाओं को प्रमुखता दी गई है। ये मील के पत्थर श्रमिक आंदोलन की लचीलापन और भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में इसकी भूमिका को दर्शाते हैं। प्रारंभिक पायनियर्स से लेकर स्वतंत्रता के बाद के ध्रुवीकरण की यात्रा, भारत के इतिहास में श्रम, राजनीति, और सामाजिक परिवर्तनों के बीच जटिल अंतःक्रिया को रेखांकित करती है।
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