Table of contents |
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राजनीतिक स्थिति |
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ऋग्वैदिक काल |
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उत्तर वैदिक काल |
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सामाजिक स्थिति |
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महिलाओं की स्थिति |
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शिक्षा |
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वस्त्र और आभूषण |
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‘विदाथ’ ऋग्वेद और अथर्ववेद में पाया जाता है
उक्त चार श्रेणियाँ निम्नलिखित प्रवृत्तियों पर आधारित हैं।
(क) ब्राह्मणवादी प्रवृत्ति: ज्ञान और समझ की सोच और व्यवहार;
(ख) क्षत्रिय प्रवृत्ति: आक्रामकता, शक्ति संरचना और व्यवस्था की स्थापना;
(ग) वैश्य प्रवृत्ति: व्यापार, उत्पादन, तकनीकी खोज और धन; और
(घ) शूद्र प्रवृत्ति: सेवा अभिविन्यास, आवश्यक कार्यों को जारी रखने और पूरा करने की इच्छा।
क्षत्रिय प्रवृत्ति:
आदर्श जीवन काल के इन चार चरणों की श्रृंखला में एक ही जीवन काल में अध्ययन, गृहस्थ जीवन, तप और त्याग शामिल है। संपूर्ण जीवन एक आदर्श आकार लेने के लिए कर्म से होकर गुजरता है।
“आइए हम देवता सवित्री (सूर्य) की सुंदर महिमा पर ध्यान करें, ताकि वह हमारे आत्माओं को शुद्ध कर सके।”
अध्ययन का मुख्य विषय वास्तव में वेद थे। अध्ययन के अन्य क्षेत्र:
(क) वेदांग
(ख) कल्प
(ग) शिक्षा
(घ) छंद
(ङ) निरुक्त
(च) ज्योतिष
(छ) व्याकरण
(ज) ज्योतिरविद्या
(झ) आस्त्रविद्या
(ट) गणितशास्त्र
(ठ) साहित्य
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1. वैदिक काल में वस्त्रों का महत्व क्या था? | ![]() |
2. वैदिक काल में आभूषणों का उपयोग कैसे किया जाता था? | ![]() |
3. वैदिक समाज में वस्त्र और आभूषण किस प्रकार के थे? | ![]() |
4. वस्त्र और आभूषणों के माध्यम से वैदिक काल की सामाजिक संरचना का क्या संकेत मिलता है? | ![]() |
5. वैदिक काल में वस्त्र और आभूषणों का धार्मिक महत्व क्या था? | ![]() |