Table of contents |
|
कवि परिचय |
|
मुख्य विषय |
|
कविता का सार |
|
कविता की व्याख्या |
|
कविता की मुख्य घटनाएं |
|
कविता से शिक्षा |
|
शब्दावली |
|
निष्कर्ष |
|
इस कविता के रचयिता श्याम नारायण पाण्डेय हैं, जिनका जन्म 1907 ई. में हुआ था। पाण्डेय जी वीर रस के प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं। उनकी सबसे चर्चित रचना है- ‘हल्दीधाटी’, जिसका प्रकाशन 1939 में हुआ था। ‘चेतक की वीरता’ शीर्षक कविता उसी रचना ‘हल्दीघाटी’ का एक अंश है। इस रचना ने स्वतंत्रता सेनानियों में सांस्कृतिक एकता और उत्साह का संचार किया था। पाण्डेय जी का निधन 1991 ई. में हुआ।
"चेतक की वीरता" का मुख्य विषय है महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता और निष्ठा। यह कविता वीर रस में लिखी गई है और एक पशु के साहस तथा अपने स्वामी के प्रति उसकी निष्ठा को प्रदर्शित करती है। इसमें चेतक की कुशलता, निडरता और युद्ध में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया गया है। यह कविता पाठकों में देशभक्ति और वीरता की भावना को जागृत करती है।
राणा प्रताप का कोड़ा चेतक के तन पर कभी भी नहीं गिरता था, क्योंकि वह इतना समझदार था कि अपने स्वामी की आज्ञा को भली-भाँति समझ जाता था। वह शत्रुओं के मस्तक पर इस तरह से आक्रमण करता था जैसे मानो कोई आसमान से घोड़ा ज़मीन पर उतर आया हो अर्थात वह बहुत तेजी से अपने शत्रुओं के सिर पर प्रहार करता था।
अगर हवा के माध्यम से भी घोड़े की लगाम जरा-सी भी हिल जाती थी तो वह तुरंत अपनी सवारी को लेकर अर्थात राणा प्रताप को लेकर तीव्र गति से उड़ जाता था। अर्थात बहुत तेजी से दौड़ने लगता था । राणा प्रताप को जिस तरह मुड़ना होता वह उनकी आँखों के पुतली के घुमने से पूर्व ही चेतक उस दिशा में मुड़ जाता था, कहने का तात्पर्य यह है कि चेतक अपने स्वामी की हर प्रतिक्रिया को भली-भाँति समझ जाता था।
चेतक अपनी कौशलता और वीरता का परिचय अपनी चाल के द्वारा दिखाता । तीव्र गति से दौड़ना और निडर होकर अपने शत्रुओं पर आक्रमण करना यह उसकी वीरता का स्मारक था। वह निडर होकर युद्ध के समय में भयानक भालों और तलवारों से सुसज्जित सेनाओं के बीच में जाकर उन पर प्रहार करता और नहरों-नालों आदि को पार करता हुआ सरपट अर्थात बहुत तेज गति से बाधाओं में फँसने के बाद भी वह निकल जाता ।
युद्ध के क्षेत्र में ऐसा कोई स्थान नहीं था जहाँ पर चेतक ने अपने शत्रुओं पर प्रहार न किया हो। वह किसी एक स्थान पर दिखता तो पर जैसे ही शत्रु उस पर आक्रमण करने के लिए वहाँ पहुँचते तो वह वहाँ से तुरंत गायब हो जाता फिर वह कहीं दूसरी जगह दिखता। ठीक उसी प्रकार बाद में वहाँ से भी गायब हो जाता। अतः वह युद्ध के सभी स्थलों पर अपनी वीरता का परचम लहराता था ।
वह नदी की लहरों की भाँति आगे बढ़ता गया। वह जहाँ भी जाता कुछ क्षण के लिए रुक जाता फिर अचानक विकराल, बिजली की चमक की तरह बादल का रूप धारण करके अपने दुश्मनों पर प्रहार करता ।
घोड़े की टापों से दुश्मन पूरी तरह से घायल हो गए। उनके भाले और तरकस सभी ज़मीन पर पड़े थे। चेतक की वीरता का ऐसा पराक्रम देखकर बैरी दल दंग रह गया ।
(1)
रण-बीच चौकड़ी भर-भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा को पाला था।
गिरता न कभी चेतक-तन पर
राणा प्रताग का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि-मस्तक पर
या आसमान पर घोड़ा था।
व्याख्या: कवि बताते हैं कि महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक युद्धभूमि में इतनी गति से दौड़ता था कि वह एक अनोखा घोड़ा बन गया था। चेतक इतनी तेज दौड़ता था कि ऐसा लगता था कि वह हवा के साथ मुकाबला कर रहा हो। वह हमेशा इतना सतर्क रहता था कि उसके शरीर पर कभी भी कोड़ा मारने की आवश्यकता नहीं पड़ी। वह शत्रुओं के सिर के ऊपर से इस तरह दौड़ता था जैसे वह आकाश में दौड़ रहा हो। वह शत्रुओं के बीच से होते हुए एक छोर से दूसरे छोर तक इतनी तेजी से दौड़ता था कि वह किसी आकाशीय घोड़े की तरह प्रतीत होता था।
(2)
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था।
कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों में।
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौड़ा करवालों में।
व्याख्या: कवि चेतक की सजगता को बताते हुए कहता है कि यदि थोड़ी सी हवा से भी उसकी लगाम हिल जाती, तो वह तुरंत सवार के इशारे को समझकर हवा में उड़ जाता था। राणा प्रताप की आँख की पुतली के इशारे पर वह तुरंत दिशा बदल लेता था। चेतक अपनी चाल में इतना कुशल था कि वह भयंकर भालों के बीच से भी बिना किसी डर के निकल जाता था। वह ढालों की परवाह किए बिना निडरता से उनके बीच से दौड़ता चला जाता था। तलवारों के बीच भी वह बेखौफ दौड़ता रहा। किसी भी प्रकार की बाधा उसे रोक नहीं सकती थी। उसकी युद्ध-कला और साहस अविश्वसनीय था।
(3)
है यहीं रहा, अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा है वहाँ नहीं।
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि-मस्तक पर कहाँ नहीं।
बढ़ते नद-सा वह लहर गया
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल बज्र-मय बादल-सा
अरि की सेना पर घहर गया।
भाला गिर गया, गिरा निषंग,
हय-टापों से खन गया अंग।
वैरी-समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग।
व्याख्या: चेतक की यह विशेषता थी कि वह कभी भी एक जगह नहीं रुकता था। वह एक स्थान पर होता और अगले पल किसी और स्थान पर दिखाई देता। युद्धभूमि में ऐसी कोई जगह नहीं थी जहाँ वह नहीं पहुँचा हो, अर्थात वह हर जगह मौजूद रहता था। वह हर शत्रु के मस्तक पर दिखाई दे जाता था।
वह एक तेज बहती नदी की तरह लहराता हुआ चलता था। कभी-कभी वह बीच में रुक भी जाता था, फिर अचानक वह शत्रु सेना पर भयंकर बझ्र की तरह टूट पड़ता था और शत्रुओं का संपूर्ण नाश कर देता था। वह शत्रु सेना पर घहरा कर बादल की तरह आक्रमण करता था। शत्रु के भाले और तरकश युद्धभूमि में गिर जाते थे, और घोड़े के पैरों की टापों से शत्रु का पूरा दल घायल हो जाता था। शत्रुओं का दल घोड़े की ऐसी वीरता देखकर हैरान रह जाता था।
'चेतक की वीरता' कविता हमें अदम्य साहस, वीरता और निर्भीकता की शिक्षा देती है। यह कविता यह भी सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हमें हार नहीं माननी चाहिए और अपने कौशल और साहस के बल पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।
1. चेतक कौन था और उसकी वीरता के बारे में क्या जानकारी है? | ![]() |
2. कविता में चेतक की वीरता को किस प्रकार दर्शाया गया है? | ![]() |
3. इस कविता से हमें कौन सी महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है? | ![]() |
4. कविता में चेतक की कौन-कौन सी मुख्य घटनाएँ हैं? | ![]() |
5. कविता का सार क्या है और इसे पढ़ने का उद्देश्य क्या है? | ![]() |