Table of contents |
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कवि परिचय |
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मुख्य विषय |
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कविता का सार |
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कविता की व्याख्या |
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कविता से शिक्षा |
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शब्दावली |
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निष्कर्ष |
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इस कविता का मुख्य संदेश साहस, संघर्ष और निरंतरता को प्रोत्साहित करना है। द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने दीपक को प्रतीक के रूप में उपयोग करके यह संदेश दिया है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, हमें अपनी आंतरिक रौशनी को बनाए रखना चाहिए और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास जारी रखना चाहिए।
‘जलाते चलो’ कविता के माध्यम से द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी समाज को प्रेरित कर रहे हैं। वे मनुष्य के दिल में आशा की किरण जगाते हुए आशावादिता, बलिदान और संघर्ष की भावना का संदेश दे रहे हैं। उन्होंने अंधेरी रात में स्नेह के दीपक जलाने का संदेश दिया है। वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर कई बुराइयों ने अपना प्रभाव बढ़ा लिया है। अनैतिकता, निराशा जैसी बुराइयाँ मिलकर चारों ओर अंधकार फैला रही हैं।
कवि मनुष्य में नई चेतना जगाने का प्रयास करते हुए कह रहे हैं कि बुरी प्रवृत्तियाँ तो युगों-युगों से मनुष्य की प्रगति को रोकने का प्रयास करती आ रही हैं, लेकिन मानव ने अपने निरंतर प्रयासों से स्नेह रूपी दीपक जलाकर इन बुरी शक्तियों को रोकने की कोशिश की है। अंधेरे को समाप्त करने के लिए एक अकेला दीपक भी पर्याप्त है, क्योंकि वह अकेले ही अंधकार का साम्राज्य समाप्त कर ज्ञान का प्रकाश फैला सकता है।
(1)
जलाते चलो ये दिये स्नेह भर-भर
कभी तो धरा का अँधेरा मिटेगा ।
भले शक्ति विज्ञान में है निहित
वह कि जिससे अमावस बने पूर्णिमा-सी,
मगर विश्व पर आज क्यों दिवस ही में
घिरी आ रही है अमावस निशा-सी।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि अगर हम प्रेम से भरे दीपक जलाते रहेंगे, तो एक दिन अंधकार का अंत जरूर होगा। कवि यहां विज्ञान की शक्ति का भी जिक्र करते हैं, जो अमावस्या जैसी अंधेरी रात को भी पूर्णिमा की तरह चमकदार बना सकती है। लेकिन कवि आश्चर्य करते हैं कि आज के समय में, जब दिन में भी उजाला होना चाहिए, वहाँ अमावस्या जैसी अंधेरी निशा क्यों छा रही है। यह अंधेरा समाज में प्रेम और स्नेह की कमी के कारण हो सकता है।
(2)
बिना स्नेह विद्युत-दिये जल रहे जो
बुझाओ इन्हें, यों न पथ मिल सकेगा।।
जला दीप पहला तुम्हीं ने तिमिर की
चुनौती प्रथम बार स्वीकार की थी,
तिमिर की सरित पार करने तुम्हीं ने
बना दीप की नाव तैयार की थी।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि बिना प्रेम के जो दीपक जल रहे हैं, उन्हें बुझा देना चाहिए, क्योंकि वे रास्ता नहीं दिखा पाएंगे। कवि याद दिलाते हैं कि जब पहली बार अंधकार ने चुनौती दी थी, तो तुमने पहला दीप जलाकर उसे स्वीकार किया था और अंधकार को पार करने के लिए दीपों की नाव बनाई थी। यह नाव उस समय से ही हमारे लिए रास्ता दिखाती रही है।
(3)
बहाते चलो नाव तुम वह निरंतर
कभी तो तिमिर का किनारा मिलेगा।
युगों से तुम्हीं ने तिमिर की शिला पर
दिये अनगिनत है निरंतर जलाए,
समय साक्षी है कि जलते हुए दीप
अनगिन तुम्हारे पवन ने बुझाए।
मगर बुझ स्वयं ज्योति जो दे गए वे
उसी से तिमिर को उजेला मिलेगा।
व्याख्या: कवि हमें लगातार प्रयास करने के लिए प्रेरित करते हैं, चाहे मुश्किलें कितनी भी हों। वे कहते हैं कि जब तुम दीप की नाव को लगातार बहाते रहोगे, तो एक दिन अंधकार का किनारा (अंत) जरूर मिलेगा। युगों से तुमने अंधकार की कठिनाइयों पर अनगिनत दीप जलाए हैं, और समय गवाह है कि भले ही कई दीपक बुझ गए हों, लेकिन जो दीपक जलते रहे, उन्होंने अंधकार को प्रकाश दिया है।
(4)
दिये और तूफ़ान की यह कहानी
चली आ रही और चलती रहेगी,
जली जो प्रथम बार लौ दीप की
स्वर्ण-सी जल रही और जलती रहेगी।
रहेगा धरा पर दिया एक भी यदि
कभी तो निशा को सवेरा मिलेगा।
व्याख्या: आखिर में, कवि बताते हैं कि दीपक और तूफान की यह कहानी हमेशा से चली आ रही है और चलती रहेगी। जो दीप पहली बार जला था, वह सोने जैसा चमकदार था और हमेशा जलता रहेगा। अगर धरती पर एक भी दीप जलता रहेगा, तो निशा (रात) में एक दिन सवेरा (सुबह) जरूर होगा। इसका मतलब है कि अंधकार (मुश्किल समय) का अंत होगा और उजाला (अच्छा समय) आएगा।
कविता से यह शिक्षा मिलती है कि हमें जीवन में कठिनाइयों के बावजूद निरंतर प्रयास करना चाहिए। प्रेम और स्नेह के साथ किया गया प्रयास ही अंधकार को समाप्त कर सकता है। हमें हार नहीं माननी चाहिए, क्योंकि निरंतर संघर्ष से ही सफलता मिलती है और अंधकार के बाद उजाला जरूर आता है।
1. "जलाते चलो" कविता का क्या अर्थ है? | ![]() |
2. "जलाते चलो" कविता के किस तत्व को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है? | ![]() |
3. "जलाते चलो" कविता का सारांश क्या है? | ![]() |
4. "जलाते चलो" कविता में किन शब्दों का विशेष महत्व है? | ![]() |
5. "जलाते चलो" कविता से हमें क्या सीखने को मिलता है? | ![]() |