Table of contents |
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कविता का परिचय |
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कवि परिचय |
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मुख्य विषय |
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कविता का सार |
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कविता की व्याख्या |
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कविता की मुख्य घटनाएं |
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कविता से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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निष्कर्ष |
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कविता का नाम: पहली बूँद
कवि का नाम: गोपालकृष्ण कौल
विषय: कविता "पहली बूँद" वर्षा ऋतु के आगमन का वर्णन करती है। यह कविता धरा पर पहली बूँद गिरने के प्रभाव और उसके प्रति धरती के भावों को प्रदर्शित करती है।
भावार्थ: कविता में प्रकृति के सौंदर्य और वर्षा के प्रथम स्पर्श को जीवंतता से चित्रित किया गया है। इसमें धरती की प्यास, हरी-भरी होने की आकांक्षा, और आकाश के नीले नयनों और काले बादलों के रूपकों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
गोपालकृष्ण कौल हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि हैं, जो अपनी कविताओं में गहरी भावनाओं और प्रकृति प्रेम को उजागर करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके लेखन में करुणा और संवेदनशीलता का स्पर्श होता है, जो पाठकों को उनकी रचनाओं से जोड़ता है। उनकी कविताएँ प्रकृति की सुंदरता और मानवीय संवेदनाओं का उत्कृष्ट संगम प्रस्तुत करती हैं।
कविता का मुख्य विषय प्रकृति के प्रति प्रेम और वर्षा की पहली बूँद का महत्व है। यह बूँद न केवल धरती की प्यास बुझाती है बल्कि नई ऊर्जा और ताजगी का संचार भी करती है। कवि ने इस कविता के माध्यम से प्रकृति और मनुष्य के गहरे संबंध को दर्शाया है, जहाँ वर्षा का आगमन जीवन के नवीनीकरण और पुनर्जागरण का प्रतीक बनता है।
प्रस्तुत कविता ‘पहली बूँद’ प्रसिद्ध कवि गोपालकृष्ण कौल द्वारा रचित है, जिसमें उन्होंने वर्षा की सुंदरता और उसके महत्व को दर्शाया है। जब आसमान से मोती के समान वर्षा की बूँदें धरा पर गिरती हैं, तो सूखी हुई धरती में नया जीवन संचार होता है और चारों ओर हरियाली फैल जाती है।
बारिश की पहली बूँद धरती के सूखे होंठों पर अमृत के समान गिरती है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है मानो निर्जीव और बेजान धरती को नया जीवन मिल गया हो। हरी घास, जो धरती की सुंदरता को और बढ़ाती है, उसकी रोमों की पंक्तियों की तरह मुस्कुराने लगती है और चारों ओर खुशहाली छा जाती है। पहली बूँद का धरती पर आगमन एक अनोखा अनुभव और परिवर्तन लाता है, जिससे धरती आनंदित हो उठती है।
नीला आकाश मानो नीली आँखों की तरह दिखता है और काले बादल उन आँखों की काली पुतलियों की भाँति प्रतीत होते हैं। ऐसा लगता है जैसे बादल धरती के दुःखों को देखकर व्यथित हो गए हों और अपनी वर्षा रूपी आँसुओं से उसे राहत दे रहे हों। इन आँसुओं की बूंदों से धरती की प्यास बुझ जाती है, और वह प्रेम से अभिभूत होकर फिर से हरी-भरी होने की आकांक्षा से भर जाती है। पहली बूँद का यह आगमन धरती के लिए न केवल एक सुंदर अनुभव है, बल्कि उसका परिणाम भी बेहद सुखद और जीवनदायी होता है।
(1)
वह पावस का प्रथम दिवस जब,
पहली बूँद धरा पर आई,
अंकुर फूट पड़ा धरती से,
नव जीवन की ले अँगड़ाई |
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि गोपालकृष्ण कौल जी द्वारा रचित कविता 'पहली बूँद' से उद्धृत हैं। यहाँ वर्षा ऋतु के आगमन से धरती में आए सुंदर परिवर्तन का वर्णन किया गया है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा ऋतु के आगमन से चारों ओर आनंद और हरियाली छा जाती है। जब वर्षा की पहली बूँद धरती पर गिरती है, तो मिट्टी में दबे बीज से अंकुर फूटकर बाहर आ जाता है, मानो वह नया जीवन पाकर अँगड़ाई लेते हुए जाग उठा हो।
(2)
धरती के सूखे अधरों पर,
गिरी बूँद अमृत-सी आकर,
वसुंधरा की रोमावलि-सी,
हरी दूब, पुलकी मुसकाई |
पहली बूँद धरा पर आई |
व्याख्या: आगे कवि कहते हैं कि धरती के सूखे होंठों पर बारिश की बूँद अमृत के समान गिरी, मानो वर्षा के होने से बेजान और सूखी पड़ी धरती को नया जीवन मिल गया हो। धरती रूपी सुंदरी के रोमों की पंक्ति की तरह हरी घास भी मुस्कुराने लगी और आनंद से भर उठी। पहली बूँद कुछ इस तरह धरा पर आई, जिसका खूबसूरत एहसास और सकारात्मक प्रभाव धरती को मिला।
(3)
आसमान में उड़ता सागर,
लगा बिजलियों के स्वर्णिम पर,
बजा नगाड़े जगा रहे हैं,
बादल धरती की तरुणाई |
पहली बूँद धरा पर आई |
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि गोपालकृष्ण कौल जी द्वारा रचित कविता "पहली बूँद" से उद्धृत हैं। इसमें वर्षा ऋतु के आगमन पर धरती में आए सुंदर परिवर्तन का वर्णन किया गया है। इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि आकाश में जल से भरे बादलों के बीच बिजली चमक रही है, मानो सागर ने सुनहरे पंख लगाकर आकाश में उड़ान भर ली हो। बादलों की गर्जना सुनकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे नगाड़े बजाकर धरा के यौवन को जागृत कर रहे हों।
(4)
नीले नयनों-सा यह अंबर,
काली-पुतली से ये जलधर,
करुणा-विगलित अश्रु बहाकर,
धरती की चिर प्यास बुझाई |
बूढ़ी धरती शस्य-श्यामला,
बनने को फिर से ललचाई |
पहली बूँद धरा पर आई |
व्याख्या: आगे कवि कहते हैं कि नीला आसमान नीली आँखों के समान प्रतीत होता है, और काले बादल उन आँखों की काली पुतलियों की तरह दिखते हैं। ऐसा लगता है जैसे बादल धरती के दुःखों से व्यथित होकर वर्षा रूपी आँसू बहा रहे हों। इस प्रकार, बारिश से धरती की प्यास बुझ जाती है। वर्षा का प्रेम पाकर धरती के हृदय में पुनः हरा-भरा होने की आकांक्षा जागृत हो उठती है। पहली बूँद कुछ इस प्रकार धरा पर उतरी, जिसका सुंदर एहसास और परिणाम धरती को प्राप्त हुआ।
कविता से यह शिक्षा मिलती है कि प्रकृति का सम्मान और जीवन में नवीनीकरण की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। जैसे वर्षा की पहली बूँद धरती को ताजगी और नया जीवन देती है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन को अपनाना चाहिए। छोटे बदलाव भी जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता ला सकते हैं।
गोपालकृष्ण कौल द्वारा लिखित "पहली बूँद" कविता प्रकृति और वर्षा ऋतु की सुंदरता को अद्वितीय रूप से प्रस्तुत करती है। यह कविता धरती की प्यास, आकाश के बदलते रंग, और पहली बूँद के गिरने के महत्व को गहराई से उजागर करती है। इस कविता में प्रकृति के सौंदर्य, वर्षा की महत्ता, और धरती के हर्षोल्लास को सुंदर तरीके से चित्रित किया गया है।
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