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Revision Notes: भाषा विकास में सुनने और बोलने की भूमिका | Hindi Language & Pedagogy - CTET & State TET PDF Download

परिचय

  • भाषा के माध्यम से मानव जीवन अर्थपूर्ण हुआ है। यह जीवन को सरल और सहज बनाने में महत्वपूर्ण है। व्यक्ति अपने विचार और भावनाएँ भाषा के माध्यम से व्यक्त कर सकता है। मानव, ईश्वर की बनाई अन्य रचनाओं में से एक विशेष स्थिति में है क्योंकि उसे भाषा कौशल का ज्ञान है। 
  • भाषा बौद्धिक क्षमता को भी व्यक्त करती है। यह एक ऐसी कला है जिसे अन्य कलाओं की तरह सीखा और उसमें निपुणता हासिल की जा सकती है।
  • भाषा को श्रवण और वाचक द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। भाषा में हर दिन नये विकासहोते रहते हैं। भाषा में चार प्रकार के कौशल होते हैं:
    i) श्रवण कौशल
    ii) वाचिक कौशल
    iii) लेखन कौशल
    iv) पठन कौशल

श्रवण कौशल और वाचक कौशल, भाषा कौशल के पहले चरण में आते हैं।

श्रवण कौशल की भूमिका

  • श्रवण कौशल का अर्थ है कानों द्वारा सुनना। इसमें हम किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा कही गई बात को सुनते हैं और उसका अर्थ समझते हैं। यह शिक्षा के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण भाग है, जहां व्यक्ति कविता, कहानी, भाषण, वाद-विवाद, और वार्तालाप से ज्ञान प्राप्त करता है। यदि किसी की श्रवण इन्द्रियों में समस्या है, तो वह न तो भाषा सीख सकता है और न ही अपने विचारों को सही से व्यक्त कर सकता है। इसलिये उसका भाषा ज्ञान बहुत कम हो जाता है। बच्चे सुनकर ही अनुकरण द्वारा भाषा सीखते हैं। यह कौशल भाषा के विकास का आधार है और इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • श्रवण कौशल के माध्यम से छात्र शब्दों का सही उच्चारण सीखता है। जब व्यक्ति किसी शब्द को सुनता है और समझता है, तब वह उस शब्द का सही अर्थ ग्रहण कर सकता है। व्यक्ति का सही उच्चारण श्रवण कौशल से स्पष्ट होता है, जिससे उसके भाषा कौशल में सुधार होता है।
  • श्रवण कौशल के द्वारा व्यक्ति रोज नए शब्द सुनता है, जिससे उसके भाषायी ज्ञान में विकास होता है। यह कौशल व्यक्ति के शब्द भंडार को बढ़ाता है, जिससे उसके भाषा कौशल में सुधार होता है।
  • सुनने के द्वारा व्यक्ति अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति प्रतिदिन ज्ञान प्राप्त करता है और उसे अपने विवेकानुसार उपयोग कर सकता है। छात्र रेडियो, मोबाइल, टीवी, और ऑडियो कैसेट जैसे उपकरणों के माध्यम से सामाजिक व्यवहार संबंधी जानकारियाँ प्राप्त कर सकता है।
  • सुनने की प्रक्रिया से व्यक्ति दूसरों के भावों, विचारों, और अभिव्यक्तियों को ग्रहण कर सकता है। ध्वनि व्यक्ति के मस्तिष्क में एक छाप छोड़ती है, जिससे वह विशेष शब्दों को स्मरण रख सकता है।

वाचिक कौशल की भूमिका

संवाद और आत्मविश्वास

  • बोलने के दौरान व्यक्ति अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करता है, जिससे संवाद स्थापित होता है और संचार की प्रक्रिया पूरी होती है। वाचिक कौशल में पारंगतता से छात्र का आत्मविश्वास बढ़ता है, जो कि शिक्षा और बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
  • वाचिक कौशल से यह पता चलता है कि छात्र की भाषा में कोई गलती है या नहीं। यह मूल्यांकन प्रक्रिया में मदद करता है। इसके माध्यम से शिक्षक छात्र की भाषा संबंधी गलतियों का पता लगाकर उन्हें सुधार सकते हैं, जिससे छात्र में निपुणता आती है।

आत्मविश्वास और भाषा विकास

  • आधुनिक समय में समाज में अपनी छवि बनाने और खुद को प्रस्तुत करने के लिए आत्मविश्वास जरूरी है। वाचिक कौशल में दक्षता से छात्र आत्मविश्वास प्राप्त करता है, जिससे वह झिझक को छोड़कर आगे बढ़ता है। जब तक छात्र अपने विचारों को व्यक्त नहीं करता, तब तक उसका भाषा विकास नहीं हो पाता। कक्षा में ही वाचिक कौशल में सुधार किया जाता है।
  • कक्षा में छात्र संकोच छोड़कर बोलना शुरू करता है और विभिन्न विषयों पर चर्चा करता है, जिससे उसका शिक्षण विकास होता है।

भाषा प्रवाह और दक्षता

  • बोलने के माध्यम से छात्र भाषा में प्रवीणता और निपुणता हासिल करता है। भाषा में उसकी दक्षता मजबूत होती है। भाषा विकास में बोलने का बहुत महत्व है। भाषण, वाद-विवाद प्रतियोगिता और प्रश्नोत्तरी के माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को सुदृढ़ किया जाता है।
  • यह बच्चे को मौखिक अभिव्यक्ति के लिए प्रेरित करता है, जो उसके भाषा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाषा का विकास प्रतिदिन होता है। यदि बोलने का कौशल विकसित नहीं होता, तो सीखने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
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FAQs on Revision Notes: भाषा विकास में सुनने और बोलने की भूमिका - Hindi Language & Pedagogy - CTET & State TET

1. श्रवण कौशल का क्या महत्व है और यह भाषा विकास में कैसे योगदान करता है?
Ans. श्रवण कौशल का महत्व इसलिए है क्योंकि यह बच्चों को भाषा के सही उच्चारण, शब्दावली और वाक्यों की संरचना को समझने में मदद करता है। जब बच्चे सुनते हैं, तो वे भाषाई संकेतों को ग्रहण करते हैं, जो उन्हें बोलने और संवाद करने में सहायता करते हैं। यह कौशल उनके सामाजिक और संज्ञानात्मक विकास के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
2. वाचिक कौशल क्या है और यह कैसे विकसित होता है?
Ans. वाचिक कौशल का अर्थ है बोलने की क्षमता, जिसमें शब्दों का सही उच्चारण, वाक्यों का निर्माण और संवाद की प्रक्रिया शामिल होती है। यह कौशल बच्चों में सुनने के अनुभवों से विकसित होता है। जब बच्चे सुनते हैं, तो वे बोलने के लिए नए शब्द और वाक्य संरचनाएँ सीखते हैं, जिससे उनका वाचिक कौशल बेहतर होता है।
3. सुनने और बोलने के कौशल में क्या संबंध है?
Ans. सुनने और बोलने के कौशल में घनिष्ठ संबंध होता है। सुनने से बच्चे भाषा की ध्वनियों और संरचनाओं को समझते हैं, जो उन्हें बोलने में मदद करता है। यदि बच्चे अच्छी तरह से सुनते हैं, तो वे बेहतर ढंग से बोलने में सक्षम होते हैं, क्योंकि वे सही उच्चारण और शब्दों की ताल को ग्रहण करते हैं।
4. भाषा विकास में सुनने और बोलने के कौशल का क्या योगदान है?
Ans. भाषा विकास में सुनने और बोलने के कौशल का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सुनने के माध्यम से बच्चे शब्दों और वाक्यों को समझते हैं, जबकि बोलने के माध्यम से वे अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करते हैं। यह दोनों कौशल मिलकर बच्चों की संज्ञानात्मक विकास, सामाजिक कौशल और आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं।
5. CTET और State TET परीक्षाओं में श्रवण और वाचिक कौशल से संबंधित प्रश्न किस प्रकार के हो सकते हैं?
Ans. CTET और State TET परीक्षाओं में श्रवण और वाचिक कौशल से संबंधित प्रश्न ऐसे हो सकते हैं जो बच्चों के भाषा विकास पर सुनने और बोलने के प्रभाव को समझने के लिए होते हैं। उदाहरण के लिए, प्रश्न पूछे जा सकते हैं कि कैसे श्रवण कौशल बच्चे के वाक्य निर्माण को प्रभावित करता है या बच्चों में वाचिक कौशल विकसित करने के लिए कौन-सी गतिविधियाँ लाभकारी हो सकती हैं।
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