Table of contents |
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कहानी का परिचय |
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मुख्य विषय |
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कहानी का सार |
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कहानी की मुख्य बातें |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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यह कहानी प्रसिद्ध लेखक जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखी गई है। इसमें हरियाणा के एक गरीब किसान हीरासिंह और उसकी प्यारी गाय सुंदरिया की कहानी है। हीरासिंह अपनी गाय का चारा ठीक से नहीं जुटा पाता था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में दिल्ली जाकर एक सेठ के यहाँ चौकीदार बन गया। सेठ को अच्छी गाय चाहिए थी, तो हीरासिंह ने अपनी ही गाय सुंदरिया बेच दी, यह सोचकर कि वह उसके सामने ही रहेगी। लेकिन सुंदरिया अपने मालिक के बिना ज्यादा दूध नहीं देती थी। यह बात सेठ को पसंद नहीं आई और उसने गाय वापस ले जाने को कहा। आखिर में हीरासिंह ने तय किया कि वह गाय को अपने गाँव ले जाएगा और सेठ के पैसे धीरे-धीरे चुका देगा। यह कहानी मनुष्य और जानवर के गहरे प्रेम और वफ़ादारी को दर्शाती है।
यह कहानी एक गरीब किसान हीरासिंह और उसकी प्यारी गाय सुंदरिया के गहरे लगाव की है। हीरासिंह उसे अपने परिवार का हिस्सा मानता था, लेकिन मजबूरी में उसने उसे बेच दिया। गाय भी अपने मालिक से बहुत प्यार करती थी, इसलिए उसके बिना खुश नहीं रही और पूरा दूध नहीं देती थी। आखिरकार हीरासिंह ने उसे वापस गाँव ले जाने का फैसला किया। यह कहानी हमें सिखाती है कि जानवर भी प्यार और अपनापन समझते हैं, और पैसा कभी भी सच्चे रिश्तों से बड़ा नहीं होता।
हरियाणा के एक गाँव में हीरासिंह नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके पास एक प्यारी गाय थी, जिसका नाम सुंदरिया था। सुंदरिया बहुत सुंदर और स्वस्थ गाय थी। लोग उसे देखकर जलन महसूस करते थे। लेकिन हीरासिंह इतना गरीब था कि वह अपने परिवार और सुंदरिया के लिए खाना-चारा भी ठीक से नहीं जुटा पाता था।
हीरासिंह को समझ नहीं आता था कि वह अपने बीवी-बच्चों और सुंदरिया की देखभाल कैसे करे। गरीबी के कारण वह सुंदरिया के लिए चारा नहीं खरीद पाता था। खाने की कमी होने लगी तो उसने सोचा कि सुंदरिया को बेच दे। लेकिन उसका बड़ा बेटा जवाहरसिंह सुंदरिया को "मौसी" कहता था और उससे बहुत प्यार करता था। इसलिए हीरासिंह को डर था कि अगर उसने सुंदरिया को बेचा तो जवाहरसिंह बहुत दुखी होगा।
पैसे कमाने के लिए हीरासिंह दिल्ली चला गया। वहाँ उसे एक सेठ के यहाँ चौकीदार की नौकरी मिल गई। एक दिन सेठ ने हीरासिंह से कहा, "तुम हरियाणा से हो, वहाँ की गायें बहुत अच्छी होती हैं। मेरे लिए एक अच्छी गाय लाओ।"
हीरासिंह ने तुरंत अपनी सुंदरिया की याद की। उसने सेठ से कहा कि उसे एक गाय के बारे में पता है। सेठ ने पूछा, "वह गाय कैसी है?" हीरासिंह ने सुंदरिया की तारीफ की और कहा, "वह गाय बहुत अच्छी है। वह पंद्रह सेर दूध देती है। मैंने उसकी देखभाल में दो सौ रुपये खर्च किए हैं।"
सेठ ने कहा, "ठीक है, मैं तुम्हें दो सौ रुपये से ज्यादा यानी दो सौ पाँच रुपये दूँगा।" तब हीरासिंह ने सच बताया कि वह गाय उसकी अपनी है, यानी सुंदरिया। सेठ बहुत खुश हुआ और उसने तुरंत सौ रुपये हीरासिंह को दे दिए। उसने कहा, "जाओ, गाय को जल्दी लाओ। ज्यादा देर मत करना।" हीरासिंह ने कहा कि उसे गाय लाने में पाँच दिन लगेंगे।
हीरासिंह गाँव गया और जवाहरसिंह को समझाकर सुंदरिया को दिल्ली ले आया। सेठ ने सुंदरिया को देखा तो बहुत खुश हुआ क्योंकि वह सचमुच बहुत सुंदर और स्वस्थ थी। हीरासिंह ने खुद सुंदरिया को चारा-पानी दिया, उसे प्यार किया और दूध निकाला। सुंदरिया ने पंद्रह सेर से भी ज्यादा दूध दिया। सेठ इतना खुश हुआ कि उसने दो सौ रुपये के अलावा सात रुपये और दे दिए।
सेठ ने सुंदरिया को अपने घोसी (गायों की देखभाल करने वाले) को सौंप दिया। लेकिन सुंदरिया घोसी के साथ जाना नहीं चाहती थी। हीरासिंह का दिल भारी हो गया। उसने सेठ से कहा, "मुझे सुंदरिया की देखभाल करने का काम दे दीजिए, चाहे मेरी तनख्वाह कम कर दीजिए।" सेठ ने कहा, "तुम बहुत ईमानदार चौकीदार हो। मैं तुम्हारी तनख्वाह और बढ़ा सकता हूँ, लेकिन तुम्हें चौकीदार का काम ही करना होगा।"
हीरासिंह ने सुंदरिया को प्यार से थपथपाया और कहा, "जा सुंदरिया, जा।" सुंदरिया ने उसकी ओर देखा, जैसे पूछ रही हो, "क्या मुझे सचमुच जाना है?" फिर वह घोसी के पीछे चली गई। हीरासिंह उसे जाते हुए देखता रहा।
अगले दिन सेठ ने हीरासिंह को बुलाकर कहा, "तुमने मुझे धोखा दिया। सुंदरिया ने सुबह सिर्फ पाँच सेर दूध दिया।" हीरासिंह ने कहा, "मैंने तो खुद पंद्रह सेर से ज्यादा दूध निकाला था।" सेठ ने कहा, "जाओ, गाय को देखो।"
हीरासिंह सुंदरिया के पास गया और प्यार से बोला, "सुंदरिया, मेरी बदनामी क्यों कर रही है?" सुंदरिया ने उसकी ओर देखा, जैसे कह रही हो, "बताओ, मुझे क्या करना है?" हीरासिंह ने घोसी से बाल्टी लाने को कहा। घोसी ने कहा कि वह पहले ही दूध निकाल चुका है। लेकिन हीरासिंह ने फिर दूध निकाला और इस बार साढ़े तेरह सेर दूध निकला। उसने दूध घोसी को दे दिया और सुंदरिया से कहा, "मेरी इज्जत रखना, सुंदरिया।"
अगले दिन फिर वही हुआ। सुंदरिया ने पूरा दूध नहीं दिया। सेठ ने हीरासिंह को बुलाकर कहा, "यह क्या है? तुमने मुझे धोखा दिया।" सेठ ने कहा, "अगर ऐसा ही है तो अपनी गाय ले जाओ और मेरे रुपये वापस करो।" लेकिन हीरासिंह ने रुपये गाँव भेज दिए थे और उनमें से ज्यादातर रुपये मकान की मरम्मत में खर्च हो गए थे।
सेठ ने कहा, "ठीक है, तुम्हारी तनख्वाह से रुपये कटते रहेंगे। जब सारे रुपये चुक जाएँ, तब गाय ले जाना।"
अगले दिन सुंदरिया ने और गड़बड़ की। उसने दूध देने से पूरी तरह मना कर दिया और रात को सारा दूध ड्योढ़ी (आँगन) में बिखेर दिया। सेठ ने हीरासिंह से पूछा, "यह क्या बात है?" हीरासिंह ने कहा, "शायद गाय रात को खुल गई और ड्योढ़ी में आकर दूध गिरा दिया।"
घोसी ने कहा कि उसने गाय को रात में खूँटे से बाँधा था। लेकिन हीरासिंह को यकीन था कि सुंदरिया ने ऐसा किया। सेठ ने कहा, "ऐसी बातें मत बनाओ। जाओ, पता करो कि यह किसने किया।"
हीरासिंह अपनी कोठरी में जाकर लेट गया। उसे बहुत दुख हो रहा था। रात को उसे लगा कि दरवाजे से कोई आवाज आई। उसने दरवाजा खोला तो देखा कि सुंदरिया खड़ी है। वह उसे ऐसी आँखों से देख रही थी, जैसे माफी माँग रही हो। मानो कह रही हो, "मैंने गलती की, मुझे माफ कर दो। मैं बहुत दुखी हूँ।" हीरासिंह का दिल भर आया। वह सुंदरिया की गर्दन से लिपटकर रोने लगा।
अगले दिन हीरासिंह ने सेठ से कहा, "आप जितने महीने चाहें, मुझसे सख्त मेहनत करवाएँ। लेकिन सुंदरिया को मैं आज ही गाँव वापस ले जाऊँगा। जब आपके रुपये चुक जाएँ, मुझे बता दीजिए। फिर मैं भी नौकरी छोड़ दूँगा।" सेठ कुछ कह पाता, इससे पहले ही हीरासिंह सुंदरिया को लेकर गाँव चला गया।
इस तरह, हीरासिंह ने सुंदरिया को बेचने का फैसला छोड़ दिया। वह समझ गया कि सुंदरिया उसके परिवार का हिस्सा है और उसे पैसे के लिए नहीं बेचा जा सकता। सुंदरिया भी हीरासिंह से बहुत प्यार करती थी और उसके बिना दूध नहीं देती थी। यह कहानी बताती है कि प्यार और विश्वास पैसे से ज्यादा कीमती होते हैं।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जानवर भी हमारे परिवार का हिस्सा होते हैं और हमें उनकी देखभाल करनी चाहिए। पैसा ज़िंदगी में सबसे ज़रूरी नहीं है, कभी-कभी प्यार और अपनापन पैसों से ज़्यादा कीमती होता है। हमें हमेशा ईमानदारी और सच्चाई से काम लेना चाहिए, जैसे हीरासिंह ने सच बताया कि गाय उसकी अपनी है। जब किसी को ज़बरदस्ती अलग किया जाता है, तो वह खुश नहीं रह सकता, जैसे सुंदरिया अपने मालिक से दूर होकर ठीक से दूध नहीं देती थी। इसलिए हमें अपनी प्रिय चीज़ों और जीवों को संभालकर रखना चाहिए और उन्हें छोड़ना नहीं चाहिए।
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1. "सुंदरिया" कहानी का मुख्य विषय क्या है? | ![]() |
2. "सुंदरिया" कहानी का सार क्या है? | ![]() |
3. इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? | ![]() |
4. "सुंदरिया" कहानी की मुख्य बातें कौन सी हैं? | ![]() |
5. "सुंदरिया" कहानी में कौन से पात्र हैं और उनकी भूमिका क्या है? | ![]() |