उस सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर ने मनुष्यों को मन एवं बुद्धि सहित दस इन्द्रियों से सुसज्जित कर सुंदरतम शरीर दिया है। सभी इन्द्रियों (शरीर के अंगों ) का अपना विशेष महत्व है। प्रस्तुत पाठ में एक कहानी के माध्यम से यही समझाया गया है कि शरीर के सुचारू रूप से कार्य करने में शरीर के सभी अंगों का अपना-अपना विशेष महत्व है।
सभी अंग साथ मिलकर ही शरीर का सम्यक् रूप से संचालन करते हैं। प्रत्येक अंग का कार्य व महत्त्व अन्य अंगों से भिन्न व विशेष हैं। प्रस्तुत पाठ में लट्लकार के क्रिया पदों का प्रयोग किया गया है।
(क)
माधवनामकः एकः बालकः आसीत् ।
सः स्वप्ने स्वशरीरस्य अङ्गानि दृष्टवान्।
तानि परस्परं चर्चां कुर्वन्ति स्म ।
पादः वदति – अहं श्रेष्ठः ।
मम कारणेन माधवः चलति ।
हस्त: अनुक्षणं वदति अरे अरे! मम कारणेन माधवः लिखति, गृहकार्यं करोति, वस्तूनि आनयति च। अतः अहम् एव श्रेष्ठः ।
मां विना माधवः किमपि द्रष्टुं शक्नोति किम् ? इति नयनं वदति ।
शब्दार्थ:
सरलार्थ: माधव नाम का एक बालक था। उसने सपने में अपने शरीर के अंग देखे। वे आपस में चर्चा कर रहे थे।
पैर बोलता है-मैं श्रेष्ठ हूँ। मेरे कारण माधव चलता है।
हाथ उसी समय बोलता है-अरे अरे! मेरे कारण माधव लिखता है, घर का काम करता है और वस्तुएँ लाता है। अतः मैं ही श्रेष्ठ हूँ।
मेरे बिना माधव कुछ भी देख सकता है क्या? ऐसा नेत्र बोलता है।
(ख)
कर्णः स्मितं कृत्वा कथयति – माधवः यदा मार्गे
गच्छति तदा पृष्ठतः यानानां ध्वनिं यदि न शृणोति
सावधान:’च न भवति, तर्हि दुर्घटना भवेत्। माधवः मम कारणेन एव शिक्षकस्य उपदेशं श्रुत्वा ज्ञानं वर्धयति, सङ्गीतं श्रुत्वा आनन्दं च अनुभवति ।
झटिति मुखं सूचयति – ‘भोः! सर्वे शृण्वन्तु, माधव: मम कारणेन भोजनं करोति, भाषणं करोति, शिक्षकस्य प्रश्नस्य उत्तरं वदति।
मम साहाय्येन उदरमपि भोजनं प्राप्नोति ।
भवन्तः सर्वे सबलाः भवन्ति । अतः अहम् एव श्रेष्ठः।
शब्दार्थ:
सरलार्थ:
कान मुस्काराकर कहता है – माधव, जब रास्ते में जाता है तब पीछे से वाहनों की आवाज नहीं सुनता है और सावधान नहीं होता है तो दुर्घटना हो सकती है। माधव मेरे कारण ही शिक्षक के उपदेश सुनकर ज्ञान बढ़ाता है और संगीत सुनकर आनन्द का अनुभव करता है।
तुरंत मुख बोलता है – ” अरे ! सभी सुनो, माधव मेरे कारण भोजन करता है, बोलता है, शिक्षक के प्रश्न का उत्तर देता है । मेरी सहायता से पेट को भी भोजन प्राप्त होता है। आप सभी बलवान हैं। अतः मैं ही श्रेष्ठ हूँ।
(ग)
उदरं सूचयति ‘भवतु भवतु, कोलाहलं न कुर्वन्तु । वयं सर्वे माधवम् एव पृच्छाम, कः श्रेष्ठः’ इति । माधव: विचारयति बोधयति च –
‘मम शरीरस्य सर्वाणि अङ्गानि मम कृते उपकारकाणि सन्ति । अहं नयनाभ्यां पश्यामि, कर्णाभ्यां शृणोमि मुखेन भाषणं करोमि भोजनं करोमि च उदरेण पाचनात् शक्तिं प्राप्नोमि पादाभ्यां च चलामि । अतः भवन्तः सर्वेऽपि श्रेष्ठाः । भवन्तः सर्वेऽपि मम प्रियाः ।
शब्दार्थः
सरलार्थ: पेट बोलता है “ठीक है, ठीक है, शोर मत करो। हम सब माधव से ही पूछते हैं, कौन श्रेष्ठ है ।”
माधव सोचता है और समझाता है-
‘मेरे शरीर के सभी अंग मेरी सहायता करते हैं। मैं आँखों से देखता हूँ, कानों से सुनता हूँ, मुख से बोलता हूँ और भोजन खाता हूँ, पेट से पचने के कारण शक्ति र प्राप्त करता हूँ और पैरों से चलता हूँ। इसलिए आप सभी श्रेष्ठ हैं। आप सभी मेरे प्रिय हैं।
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